एक
मित्र ने पुछा शादी कब करोगे? मैने कहा करना जरूरी है क्या ? तो बोले मेरा
मानना है जीवन मे कुछ करो न करो शादी जरूर करो। मैँ मौन रहा और मुसकुराता
रहा। तब फिर मित्र ने कहा, अरे शादी नहीँ करोगे तो समाज के लोग क्या कहेगे?
अब अगर मै कुछ बोलता तो अच्छा खासा उपदेश दे देता परंतु चुप रहा। सोचा कि
बेकार मे मै क्योँ उनको बोर करूँ। शान्त ही रहूँ तो अच्छा है।
शादी करो या न करो समाज का काम तो कहना ही है। तुम्हे जिसमे आनन्द आता है वो करो शादी करनी है शादी करो नहीँ करनी तो मत करो! शादी करोगे तो भी समाज कुछ न कुछ कहेगा नहीँ करोगे तो भी कहेगा। यदि शादी करोगे तो पत्नी के बारे मे बात करेगा, उसकी पत्नी गोरी है, काली है स्वभाव ठीक है या खराब है, सुशील है या नहीँ ,लड़का खुश रखता है या नही, पत्नी सास की सेवा करती है या नही, चाल चलन कैसा है, जोड़ी ठीक है या नहीँ और ना जाने क्या क्या बाते करेगा समाज। और यदि शादी नहीँ की तो भी समाज कहेगा। लड़के मे कुछ कमी होगी, अरे शादी नही की वंश कैसे बढ़ेगा, लड़का सन्यासी बनेगा क्या, कहीँ नपुंसक तो नहीँ, लड़का मर्द नहीँ है, और न जाने क्या क्या। मतलब शादी करो तो भी दिक्कत न करो तो भी दिक्कत। समाज तो बात करेगा ही फिर समाज की बात क्योँ सुने तुम्हारी जो मर्जी है वो करो जिसमेँ तुम आनन्द पाते हो वो करो। जिसमे तुम्हारी आत्मा संतुष्ट हो वो करो। जरा अतीत मे जा कर देखो कितनो ने शादी नहीँ की और सम्मान से रहे। क्या उन्हे समाज कहने जाता है कि उनमे कुछ कमी थी या नपुंसक थे या वे मर्द नहीँ थे? जरा देखो तो उनमे अपार पुरुषत्व था भीष्म, विवेकानन्द अपार पुरुषत्व से भरे थे। और जिन्होने शादी की उनमे भी अनेक श्रेष्ठ उदाहरण मिल जायेँगे जैसे महत्मा बुद्ध, अर्जुन, एसे अनेक हैँ। बस तात्पर्य इतना है कि शादी करो या न करो बस कर्म अच्छे करो। जो तुम्हारी आत्मा को आनन्द प्रदान करता है वो करो समाज क्या कहेगा ये मत विचार करो। केवल श्रेष्ठ कार्य करो । फिर समाज बोलेगा नहीँ सिर्फ तुमहारा अनुसरण करेगा।
शादी करो या न करो समाज का काम तो कहना ही है। तुम्हे जिसमे आनन्द आता है वो करो शादी करनी है शादी करो नहीँ करनी तो मत करो! शादी करोगे तो भी समाज कुछ न कुछ कहेगा नहीँ करोगे तो भी कहेगा। यदि शादी करोगे तो पत्नी के बारे मे बात करेगा, उसकी पत्नी गोरी है, काली है स्वभाव ठीक है या खराब है, सुशील है या नहीँ ,लड़का खुश रखता है या नही, पत्नी सास की सेवा करती है या नही, चाल चलन कैसा है, जोड़ी ठीक है या नहीँ और ना जाने क्या क्या बाते करेगा समाज। और यदि शादी नहीँ की तो भी समाज कहेगा। लड़के मे कुछ कमी होगी, अरे शादी नही की वंश कैसे बढ़ेगा, लड़का सन्यासी बनेगा क्या, कहीँ नपुंसक तो नहीँ, लड़का मर्द नहीँ है, और न जाने क्या क्या। मतलब शादी करो तो भी दिक्कत न करो तो भी दिक्कत। समाज तो बात करेगा ही फिर समाज की बात क्योँ सुने तुम्हारी जो मर्जी है वो करो जिसमेँ तुम आनन्द पाते हो वो करो। जिसमे तुम्हारी आत्मा संतुष्ट हो वो करो। जरा अतीत मे जा कर देखो कितनो ने शादी नहीँ की और सम्मान से रहे। क्या उन्हे समाज कहने जाता है कि उनमे कुछ कमी थी या नपुंसक थे या वे मर्द नहीँ थे? जरा देखो तो उनमे अपार पुरुषत्व था भीष्म, विवेकानन्द अपार पुरुषत्व से भरे थे। और जिन्होने शादी की उनमे भी अनेक श्रेष्ठ उदाहरण मिल जायेँगे जैसे महत्मा बुद्ध, अर्जुन, एसे अनेक हैँ। बस तात्पर्य इतना है कि शादी करो या न करो बस कर्म अच्छे करो। जो तुम्हारी आत्मा को आनन्द प्रदान करता है वो करो समाज क्या कहेगा ये मत विचार करो। केवल श्रेष्ठ कार्य करो । फिर समाज बोलेगा नहीँ सिर्फ तुमहारा अनुसरण करेगा।