क्या आत्मा होती है ?


मेरा पिछला लेख "ब्रम्हांड की रचना किसने की " को पढ़ करमेरे मित्र ने एक सवाल पूछा, की क्या आत्मा होती है? और अगर होती है तो वो जीव के मरने के बाद  कहा जाती है ? मैं आत्मा के विषय में तबसे गहराई से सोंचने लगा की आत्मा क्या है?  क्या ये वाकई होती है? जब मैंने आत्मा के विषय में सोंचना प्रारंभ किया तो मेरे मस्तिष्क में प्रश्न उठा की क्या वाकई हर जीव के चलायमान, गतिमान या क्रियावान होने के पीछे आत्मा है ? पृथ्वी पर करोनो अरबों प्रजातीय विभिन्न प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं उनमे मनुष्य भी है।  मैं कभी कभी यह सब सोचते सोचते अध्यात्म की ओर चला जाता था। पर मुझे इसका हल अध्यात्म में रह कर नहीं निकालना था मेरी विधि तो वैज्ञानिक है तो मुझे इन सब से दूर जाना होगा , उस समय जब बिग बैंग के बाद ग्राही और तारो का निर्माण प्रारंभ हो गया था
                           मैं यहाँ मानता हूँ की इस अन्तरिक्ष में कोई भी चीज़ हो उसको गतिमान अवस्था में आने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है , इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिग बैंग है , जिसमे प्रचंड उर्जा उत्पन्न की और इसके बाद ही ब्रम्हांड की रचना हुई उस अपार उर्जा के बाद ही असंख्य गृह नक्षत्र अस्तित्व में आये बिग निंग के समय जो उर्जा थी उसी उर्जा के कारण हम सब अस्तित्व में आये मुझे पता है की कुछ लोग यह पढ़ कर  यही कहेगे की उस बिग बैंग की उर्जा से हम सब का क्या सम्बन्ध पर मैं तो या ही कहूँगा की उस बिग बैंग  की उर्जा का सम्बन्ध सिर्फ हमसे ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर व्याप्त सभी जीव जंतुओं से है यहाँ तक मैं यह भी कहूंग की इस अन्तरिक्ष में यदि पृथ्वी जैसे और भी गृह हैं , और यदि उनपर भी जीवन है तो उन सब का सम्बन्ध बिग बैंग से है पर कैसे? आइये जानते हैं ? हम यह तो जानते हैं की जो उर्जा बिग बैंग करने के लिए उत्पन्न हुई , उसके बाद ही सरे गृह नक्षत्र,  आकाश गंगाएं अस्तित्व में आईं। फिर धीरे धीरे असंख्य सोलर सिस्टम का निर्माण हुआ जिनमे से एक हमारा सोलर सीटें है।और उसमे हमारी पृथ्वी और सूर्य तह गृह और इनके उपग्रह हैं। प्रराम्भा में जब हमारे सोलर सिस्टम का निर्माण हुआ तो उस समय पृथ्वी अत्यंत गरम थी यहाँ हमेशा दहकते हुए लावे और उल्का पिंडो की बरसात होती थी फिर धीरे धीरे पृथ्वी का वातावरण ठंडा होने लगा इस क्रिया के होने में कई मिलियन वर्ष लगे, फिर एक समय ऐसा आया की पृथ्वी बहुत ठंडी हो गई , यहाँ का तापमान इतना अधिक गिर गया की हिम युग गया कुछ वैज्ञानिको का मत है की पृथ्वी पर पानी अधिक मात्र में इस लिए है क्योंकि पृथ्वी पर बर्फीले हिम खंड बरसे होंगे जो अत्यंत ठन्डे होने के कारण अन्तरिक्ष में बने होंगे और पृथ्वी पर गिर कर पिघल गए होंगे इस तरह कई वर्षों तक चलता रहा। फिर एक समय ऐसा आया की पृथ्वी का वातावरण सामान्य हो गया। परन्तु पृथ्वी के वायुमंडल में हमेश बिजलिया चमकती रहती थी गैसों के कारन इसका वायुमंडल अत्यंत भयानक था उस समय बिजली गिरना सामान्य बात थी
                              हमारे बीच एक वैज्ञानिक ने जन्म लिया जिनका नाम था मिलर। उन्होंने एक प्रयोग में पृथ्वी के शुरुवाती वक़्त की स्त्थितियां उत्पन्न की उन्होंने एक प्रयोग में हैड्रोजन , मीथेन, अमोनिया तथा जल वाष्प का मिश्रण तैयार कर उसे जीवाणु रहित गैस कंटेनर से गुजरने का मौका दिया  इसी  बीच इन गैसों को एक विद्दुत उर्जा दी गई इनकी यह कल्पना जीवन के प्रारंभ के वक़्त पर मौजूद वातावरण पर आधारित थी जल वाष्प को प्रारंभिक काल के महा सागरों के रूप में उपयोग किया गया था , नतीजा चमत्कारिक निकला था मिश्रण द्रव्य भूरे रंग का हो गया तथा उसमे अमीनो एसिड पाए गए जो प्रोटीन के मूल निर्माण तत्व होते हैं। और प्रोटीन जीवन का प्रमुख तत्व होता है आगे चल कर न्यूक्लिक एसिड भी इसी तरह पाया गया और यह सिद्ध हुआ की प्राणी में अनुवांशिक सुचना एकत्र कर उनके रूपांतरण का काम न्यूक्लिक एसिड करता है। मेरा मानना है  इस पुरे प्रयोग ने प्रमुख भूमिका विद्दुत उर्जा ने निभाई जिसके कारन यह निष्कर्ष निकला की न्यूक्लिक एसिड ही वह तत्व है जो डीएनए की रचना में प्रमुख है इसी के कारन डीएनए अस्तित्व में आया जब न्यूक्लिक एसिड ने विभिन्न परमाणुओं के साथ मिलकर अपना कार्य करना प्रारंभ किया होगा तब डीएनए का निर्माण हुआ इसके बाद इन डीएनए के चारो तरफ अक अत्यंत पतली झिल्ली का आवरण बन गया ये झिल्लिया अक्सर जल में बन जाती हैं इस झिल्ली के आवरण में आने के बाद इसमें अनेक परिवर्तन हुए और फिर एक कोशकीय जीवों का निर्माण हुआ जिसे हम अमीबा कहते हैं यह घटना  पृथ्वी पर कई जगह घटी क्यों की पृथ्वी के प्रारंभ काल में पृथ्वी के वातावरण में बिजली का चमकना एक आम घटना थी और जब उस वातावरण में बिजली से उर्जा उत्पन्न हुई , तो उसी उर्जा से पृथ्वी पर अमीनो एसिड और न्यूक्लिक एसिड का निर्माण हुआ जो की डीएनए की मूल इकाई है और डीएनए किसी भी जीव की एक बहुत छोटी इकाई है , जो एक कोशकीय जीवों में भी पाई जाती है कुल मिलकर उर्जा ने ही न्यूक्लिक एसिड और अमीनो एसिड अम्ल को सक्रीय किया जो जीवों के लिए अति महत्त्व पूर्ण है ये उर्जा ही है जो जीवों के निर्माण करने की मूल इकाई हैउर्जा से ही न्यूक्लिक एसिड अस्तित्व में आया और सक्रीय हुआ , तो मैं तो यही कहूँगा की किसी भी जीव में जो मूल जीज़ है वो है उर्जा और यही उर्जा सृष्टि में जीवन का आधार है जिसे धार्मिक भाषा में आत्मा कहते हैं ।अब आप के मन में शायद कुछ परष्ण उठ रहे होंगे उनके निवारण के लिए इसे मैं और गूढता से समझाता हूँ 
                             बिग बैंग के समय उत्पन्न हुई जितनी भी उर्जा थी वाही उर्जा किसी किसी रूप में इस अन्तरिक्ष में हमारे सामने अति है इस अन्तरिक्ष में उर्जा का मूल स्रोत बिग बैंग है उसके बाद ही, या यूँ  कहे,  इस उर्जा के कारण ही ब्रम्हांड का विस्तार हुआ आप कल्पना कीजिये  की आप  के पास ढेरों मोमबत्तिया हों और उसे जलाने के लिए आप के पास उर्जा का कोई स्रोत हो तो आप उर्जा कहाँ से लायेगे ? आप को एक उर्जा का स्रोत ढूँढना ही पड़ेगा जैसे लैटर या मंचिस आप एक बार आग जला कर ही सारी मोम्बतियों को जला सकते हैं ठीक यही बिग बैंग में भी हुआ जो उर्जा मिली वो बिग बैंग से मिली और यही उर्जा हमारे बीच किसी किसी तरह  हमारे समक्ष आती है मेरा मन्ना है की उर्जा कभी नष्ट नहीं होती बस उसका रूप परिवर्तित हो जाता है Ainstain  का एक नियम जो E=MC स्क्वायर जिसने यह साबित कर दिया की असल में पदार्थ और उर्जा एक ही सिक्के के दो पहलु हैं कहने का तात्पर्य हर पदार्थ में उर्जा विद्यमान होती है जब जीवों का विकास हुआ और जीवो की संरचना जटिल होने लगी तो उनमे उर्जा भी अधिक होने लगी जब कोई जीव मरता है तो इसका मतलब होता है की जीव की उर्जा पूर्ण रूप से ख़त्म हो जाना अर्थात वो प्राण रूपी उर्जा भी समाप्त हो जाती है अब सवाल ये उठता है की ये उर्जा जाती कहाँ है क्योंकि उर्जा तो नष्ट नहीं होती वह किसी किसी तरह हमारे समक्ष जरूर अति है मेरे अनुसार वह उर्जा वातावरण में फ़ैल जाती है।  कुछ उर्जा तो उसके मृत शरीर में ही रह जाती है जो कुछ अन्य जीवों के कार्य करने के लिए उर्जा प्रदान करती हैं,क्योंकि कुछ जीव वो मृत शरीर खा जाते हैं , कभी कभी मृत शरीर मिटटी में मिल जाता है जिसपर अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ पनपती हैं ।और जो उर्जा वायु में फ़ैल गई है उसे पेड़ पौधे या अन्य जीव किसी किसी रूप में ग्रहण कर लेते हैं इस तरह एक जीव की कुल उर्जा इधर उधर बाँट जाती है और फिर वो हमारे समक्ष किसी किसी रूप में प्रस्तुत होती है
                            जब कोई पक्षी अंडे देता है तो उसके अंडे के भीतर नर पक्षी की उर्जा और मादा पक्षी की उर्जा विद्यमान होती है , फिर मादा पक्षी अंडे को से कर उसे और उर्जा प्रदान करती है , तब जा कर अंडे में उर्जा के कारण प्राण आते हैं यही सभी जीवों के साथ होता है। मनुष्यों में भी स्त्री की उर्जा पा कर भ्रूण में उर्जा उत्पन्न होती है और उसमे प्राण आते हैं अब आप सोंचिये की अगर आप को खाना पानी कुछ दिया जाये तो आप की उर्जा धीरे धीरे सब कार्यों में खर्च हो जाएगी और एक समय ऐसा आयेगा की आप निष्क्रीय हो जायेंगे और जो आप की मूल उर्जा है जिसे आप आत्मा कहते हैं वह भी एक समय बाद निकल जाएगी ठीक उसी तरह जिस तरह मोबाइल की बैटरी खर्च  हो जाती है। कहने का तात्पर्य जिसे हम आत्मा कहते हाँ वह जीवन की मूल उर्जा ही है
                    मैं तो यही कहूँगा की बिग बैंग ही है जो हमारे जीवन का आधार है,  जिससे हर जगह उर्जा है, और उसी से हम अस्तित्व में हैं मैंने भागवत गीता में पढ़ा है की परमात्मा एक विशाल प्रकाश पुंज है, और आत्मा उसका बहुत ही छोटा सा अंश मात्र है शायद यह सही ही है शायद उस बिग बैंग को ही परमात्मा की संज्ञा दी गई होगी जिसमे अपार प्रकाश और उर्जा विद्यमान है थी उस उर्जा के प्रत्येक कण से ही इस ब्रम्हांड की रचना हुई तभी गीता में कहा गया की इश्वर हर वास्तु में विद्यमान है