Wednesday 3 September 2014

ईश्वरादेश

ईश्वर के आदेश के बिना एक पत्ता भी नहीँ हिलता।
जो गलत है उसको करने के लिये ईश्वर ने स्वयं
मनुष्य शरीर मेँ संम्भावनाएँ उत्पन्न की हैँ।
ईश्वर यही देखता है कि किस मनुष्य ने उन गलत
सम्भावनाओँ को नष्ट करके अच्छे
कर्मो को किया। फिर उस मनुष्य को उसके
कर्म स्वरूप फल भी देता है। जब मनुष्य
सभी गलत सम्भावनाओँ को नष्ट करके केवल अच्छे
कर्म करता है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
बाकी बुरे काम ईश्वर ने पहले से निर्धारित
किये हैँ, और समाज को सबक सिखाने के लिए उसके
विपरीत अच्छे कार्योँ की सम्भावनाएँ
भी निर्धारित की हैं। कौन
उसकी दोनो प्रकार की सम्भावनाओँ को अपने
शरीर के द्वारा किस प्रकार संयोजित करता है,
बस ईश्वर यही देखता है और उसके अनुरुप फल देता है।

Monday 10 March 2014

महान पुरुषोँ के उद्देश्य

अतीत मेँ जितने भी महान लोग हुए एवं जितने
भी देवता अवतार लेकर इस धरा पर आये,
उनका उद्देश्य था की उनका अनुसरण करके
मनुष्य धर्म के मार्ग पर चले उनकी शिक्षाओँ
को अपने जीवन मेँ आत्मसात करेँ। परंन्तु
वर्तमान मे यदि किसी भी व्यक्ति को उन
महान पुरुषोँ के जीवन का उदाहरण देकर
समझाने की कोशिश करोगे तो लोग कहते हैँ,
कि "वो फलाना थे मैँ और आप वो नहीँ है,
वो समय चला गया, अब के समय की बात
करो अभी के समय मे कोई एसा है?" ऐसे
वाक्योँ को कहकर वे अपने मन मेँ छुपे
दुर्व्यवहारोँ को तीव्रता प्रदान करते हैँ। और
मन को अच्छा लगने वाले गलत
कार्यो को ही करते हैँ। वे उन महापुरुषोँ के
जीवन को व्यर्थ साबित करते हैँ, अवतार लेने
वाले देवताओँ की पूजा तो करते है परंतु
दूसरी तरफ उनके जीवन चरित्र को ही व्यर्थ
बताते हैँ ऐसे लोगोँ के लिये उन महान पुरुषोँ ने
व्यर्थ ही जन्म लिया था। कर्म काण्डी बनकर
सभी ने पूजा तो कर ली परंतु जो शिक्षायेँ हैँ
उनको कौन सीखेगा, ये तो वही बात हुई जिस
थाली मे खाया उसी मेँ छेद कर दिया।
जीवन तो तुम्हारा तब सफल है जब तुम अतीत मेँ
जन्मे महापुरुषोँ के शिक्षाओँ के विशाल समुद्र से
एक बूँद भी ग्रहण कर पाओ। अन्यथा जीवन
बेकार है। स्वामी विवेकानन्द, श्री कृष्ण,
महात्मा बुद्ध, एवं अनेको हैँ जिनसे तुम सीख
सकते हो पर तुम उनको पढ़ो तो, पर
उनको टालो नहीँ। तुम उन्हे ग्रहण कर सकते
हो और वैसे बन सकते हो बस आत्मविश्वास
तो लाओ।

Tuesday 18 February 2014

इस भौतिकता में तुम कहाँ हो ?

यह सम्पूर्ण संसार भौतिक है। और मनुष्य इस
भौतिकता के पीछे ही भाग रहा है। भौतिक
भोग विलास ही मनुष्य के लिये सब कुछ है। सब
भौतिक। फिर तुम कहा हो ? तुम कहोगे ये
क्या न खड़ा हूँ या बैठा हूँ , ये मैँ ही तो हूँ।
परन्तु क्या सच मे ये तुम हो ? तुम क्या हो? ये
तुम नही तुम्हारा शरीर है तुम्हारे शरीर
का प्रत्येक अंग तुम नही होँ, वह तुमसे अलग है।
हाथ तुम नहीँ हो, पैर तुम नहीँ हो, पेट तुम
नहीँ हो, पीठ तुम नहीँ हो, नाक, कान, आँख, तुम
नही हो। ये तो तुम्हारे शरीर के बाहरी अंग हैँ।
फिर आप भीतर के अंगो की बात करोगे, कुल
मिलाकर ये शरीर के बाहरी भीतरी अंग है। पर
तुम कहाँ हो? तुम तो वो हो जिसके कारण ये
भौतिक शरीर चलता है, उठता है, बैठता है,
देखता है, सुनता है, सोचता है, तुम
ऊर्जा हो वही ऊर्जा जिसके कारण ये भौतिक
शरीर चालायमान है।
ऊर्जा ही तुम्हारी आत्मा है। बस यही तुम हो।
ईश्वर ने तुम्हे भौतिक संसार मेँ सुगमता से रहने
के लिये ये भौतिक शरीर दिया है।
इसका प्रयोग
करो इसको विलासिता का आदी मत बनाओ।
यह आत्मा परमात्मा का अंश है यह पवित्र है,
तथा ईश्वर स्वरूप है, इसको व्यर्थ मत
समझो यही तो तुम हो तुम ईश्वरीय कार्य
करो ये शरीर आत्मा के लिये प्रयोग करो।
आत्मा शरीर के लिये नहीँ शरीर आत्मा के लिये
है। इसे भौतिकता मे लिप्त मत होने दो,
यदि लिप्त हुए तो तुम्हे अपने आप का बोध
नहीँ होगा और तुम सदैव शरीर ही रह जाओगे
भौतिकता मेँ डूब जाओगे तुम कौन हो भूल जाओगे।
तुम कौन हो इसे जान लो और ईश्वरीय कार्य
करो फिर देखो कैसा आनन्द मिलता है।