Tuesday 18 February 2014

इस भौतिकता में तुम कहाँ हो ?

यह सम्पूर्ण संसार भौतिक है। और मनुष्य इस
भौतिकता के पीछे ही भाग रहा है। भौतिक
भोग विलास ही मनुष्य के लिये सब कुछ है। सब
भौतिक। फिर तुम कहा हो ? तुम कहोगे ये
क्या न खड़ा हूँ या बैठा हूँ , ये मैँ ही तो हूँ।
परन्तु क्या सच मे ये तुम हो ? तुम क्या हो? ये
तुम नही तुम्हारा शरीर है तुम्हारे शरीर
का प्रत्येक अंग तुम नही होँ, वह तुमसे अलग है।
हाथ तुम नहीँ हो, पैर तुम नहीँ हो, पेट तुम
नहीँ हो, पीठ तुम नहीँ हो, नाक, कान, आँख, तुम
नही हो। ये तो तुम्हारे शरीर के बाहरी अंग हैँ।
फिर आप भीतर के अंगो की बात करोगे, कुल
मिलाकर ये शरीर के बाहरी भीतरी अंग है। पर
तुम कहाँ हो? तुम तो वो हो जिसके कारण ये
भौतिक शरीर चलता है, उठता है, बैठता है,
देखता है, सुनता है, सोचता है, तुम
ऊर्जा हो वही ऊर्जा जिसके कारण ये भौतिक
शरीर चालायमान है।
ऊर्जा ही तुम्हारी आत्मा है। बस यही तुम हो।
ईश्वर ने तुम्हे भौतिक संसार मेँ सुगमता से रहने
के लिये ये भौतिक शरीर दिया है।
इसका प्रयोग
करो इसको विलासिता का आदी मत बनाओ।
यह आत्मा परमात्मा का अंश है यह पवित्र है,
तथा ईश्वर स्वरूप है, इसको व्यर्थ मत
समझो यही तो तुम हो तुम ईश्वरीय कार्य
करो ये शरीर आत्मा के लिये प्रयोग करो।
आत्मा शरीर के लिये नहीँ शरीर आत्मा के लिये
है। इसे भौतिकता मे लिप्त मत होने दो,
यदि लिप्त हुए तो तुम्हे अपने आप का बोध
नहीँ होगा और तुम सदैव शरीर ही रह जाओगे
भौतिकता मेँ डूब जाओगे तुम कौन हो भूल जाओगे।
तुम कौन हो इसे जान लो और ईश्वरीय कार्य
करो फिर देखो कैसा आनन्द मिलता है।

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